मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं ,
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु ,
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥
पद्मासन में ध्यान लगाए मौन है
वीराने में तपता योगी कौन है
नाद न कोई तारा, डमरू कभी कभारा
अदमुंदी आँखों से, सब देख रहा संसारा
जो नाथों के नाथ कहाते
याचक बूटी बेल चढ़ाते
जातक झूम झूम के गाते ओमकारा
अर्धचंद्र माथे पे साजे
वक्षस्थल कपाल बिराजे
जटा चक्र से बहती निर्मल शिव धारा☘️