दादा,आत्मा,परमात्मा और प्रकृति के बीच छिपे हुए रहस्य को उजागर करने के लिये पूर्व के सभी सिंद्धातों से अलग हटकर स्वंतत्र रूप से विचार करना होगा।
स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाने का पथ खोजने में सभी को साइड।🙏🙏
आदरणीय सर जी वास्तव में भारत भाईचारा और सौहार्द से मज़बूत है, इस मज़बूत परंपरा की ताकत को नष्ट करने का काम ही बीजेपी और संघ परिवार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग,वरना भारत अब तक लहूलुहान हो जाता था, भारत में एकता बाकी है और बाकी रहेगी इस धरती का गुण है।
जय हिन्द
अब नेटवर्किंग साथ छोड़ रही है बंधुवर। शास्त्रीय विवेचनाएं आजकल निरर्थक है।
हम गृहस्थ लोग दैनंदिन की बिसंगतियों पर
ही चर्चा कर लें, वहीं बहुत है,निरंजन व तुम्हें
राम राम!
शुभ सन्ध्या बड़ेभाई जी🙏🙏
धर्मग्रंथों के चक्करों में पड़ना ही क्यों?जब हम सब एक ही परमपिता (नाम बेशक भिन्न)हो,तो किसी के लिखे किताबों पर क्यो जाना।लेखक के अपने विचार भी हो सकते है वो जो पाया देखा महसूस किया उसे लिख डाला।
हर धर्मशास्त्र भी इसी प्रश्नके सापेक्ष ही है दादा!
जबतक हम ब्रह्मविद्या केलिए त्रिगुणात्मक विवेचन से ऊपर उठकर कर्मकांडीय प्रभाव रहित तुरीय स्थिति पर ठहर कर निष्पक्ष विचार साक्षीभाव से नही करेंगे तबतक सत्य ढंका ही रहेगा। पूर्वाग्रह त्यागना पड़ेगा ब्रह्मविद्यार्थी को
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उंस जैसे इंसान न तो किसी संस्कृति न सम्प्रदाय न समाजकी बन्धनसे बंधे जा सकता है। श्रीकृष्ण पर 12 किताब है उनकी। दिमाग खराब हो गया पढ़कर की क्या सत्य का उद्घाटन हुई है और श्रीकृष्ण क्या हैं! अलौकिक प्रवचन!
किताब लिखते समय पढा हूं हर धर्म और साधुओंको🌷🌷🌷