यात्रीगण, कृपया ध्यान देना बंद कर दें। भारत अमृत काल में प्रवेश कर चुका है। अमृत चख लें और अजर अमर हो जाएँ। रोज़गार, वेतन, पढ़ाई इन सबकी चिन्ता से मुक्त हो जाएँ। अमृत काल चल रहा है। 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा। ये गाड़ी चलती स्टेशन से है मगर स्टेशन पर कभी पहुँचती नहीं।
लता जी, लता दी, लता मंगेशकर। अनंत भावों को अपने सुरों से साधने वाली लता मंगेशकर की याद इस चमन में हर दिन महका करेंगी। ज़माना हमेशा दिल ये याद करेगा। श्रद्धांजलि।
यात्रीगण, कृपया ध्यान देना बंद कर दें। भारत अमृत काल में प्रवेश कर चुका है। अमृत चख लें और अजर अमर हो जाएँ। रोज़गार, वेतन, पढ़ाई इन सबकी चिन्ता से मुक्त हो जाएँ। अमृत काल चल रहा है। 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा। ये गाड़ी चलती स्टेशन से है मगर स्टेशन पर कभी पहुँचती नहीं।
यदि एक ज़हर दूसरे ज़हर से मिल जाए तो इस बात का निश्चय कौन करेगा कि उनमें पहले कौन सा डाला गया था। और यदि इस बात का निश्चय हो भी जाए तो इससे फ़ायदा क्या होगा? - गांधी ( पृष्ठ संख्या 48, प्रार्थना प्रवचन, खंड दो )
जिस सोच ने गांधी की हत्या की वह आज भी आपके बीच है। उस सोच के प्रसार में लगे लोग 30 जनवरी से भागने के लिए सौ तारीख़ें खड़ी करते रहते हैं। इस गीत में रसूल मियाँ पूछ रहे हैं उनके गांधी को किसने मारा। जवाब आप जानते हैं। invidious.fdn.fr/0x15czkr1dM
फिर कोई दूसरा कमाल ख़ान नहीं होगा भारत की पत्रकारिता आज तहज़ीब से वीरान हो गई है। वो लखनऊ आज ख़ाली हो गया जिसकी आवाज़ कमाल ख़ान के शब्दों से खनकती थी। NDTV परिवार आज ग़मगीन है। कमाल के चाहने वाले करोड़ों दर्शकों का दुख ज्वार बन कर उमड़ रहा है। अलविदा कमाल सर।
एक साल पहले की तस्वीर याद करें। गोदी मीडिया किसान आंदोलन को आतंकवादी कहने लगा। उस अफ़सर को याद करें जिसने किसानों का सर फोड़ देने की बात कही और सरकार उसके साथ खड़ी रही। किसानों ने विज्ञान भवन में ज़मीन पर बैठकर अपना खाना खाया। उन कीलों को याद करें जो राह में बिछाई गई।
सिविल सोसायटी को युद्ध का चौथा मोर्चा बता कर पुलिस को संगीन तानने की सीख देने वाली सरकार के सामने आज किसान आंदोलन नाम की सिविल सोसायटी की जीत हुई है। बाक़ी चुनाव तो चंदे को अंधेरे में रखने वाले क़ानून और गोदी मीडिया के दम पर भी जीते जा सकते हैं।
किसानों को बधाई। उन्हें भी,जिन्होंने किसानों को आतंकवादी,आंदोलनजीवी कहा। किसानों ने देश को जनता होना सिखाया है,जिसे रौंद दिया गया था। आवाज़ दी है। गोदी मीडिया आज भी किसानों की बात किसानों के लिए नहीं ‘उनके’ लिए करेगा।किसानों ने समझा दिया कि किसानों को कैसे समझा जाता है।
ये गाना भी सुन लें,दो जासूस करे महसूस कि दुनिया बड़ी ख़राब है लेकिन कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में निजता का हनन नहीं हो सकता। अपने बेडरूम में पर्दा लगवा लें,पैगा- जासूस झांक रहा है। आम का मौसम नहीं है गोदी पत्रकार पूछने की तैयारी करें, कद्दू कैसे छीलते हैं ।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला जनता की जेब और बेडरूम में झांकने वाली सरकार के लिए सबक़ है। जस्टिस रमना की बेंच का यह ऐतिहासिक फ़ैसला क्या हिन्दी अख़बारों में विस्तार से छपेगा? कल देखिएगा।जब अख़बार ख़बरों को छिपाने और सरकार जनता की जासूसी करने लगे तब उसे लोकतंत्र की हत्या कहते हैं।
द वायर की पत्रकारिता और पत्रकारिता की चाह रखने वालों की ऐतिहासिक जीत हुई है। गोदी मीडिया में काम करने वालों को मेरी एक सलाह है। अपने गोदी संपादकों/ऐंकरों की आँखों में देखिएगा जब वे नज़रें बचाकर दबे पाँव न्यूज़ रूम में चल रहे होंगे। गोदी मीडिया भारत के लोकतंत्र का हत्यारा है।
बहुत ज़रूरी है कि हिंसा की भाषा और तेवर से दूर रहें। हिंसा का जवाब हिंसा नहीं है। कल ही तो हम सभी इस बेहद साधारण बात को दोहरा रहे थे। एक दिन में भूल जाते हैं। साधारण सी लगने वाली इस बात का अभ्यास बहुत कठिन है। कोशिश कीजिए। शांति और संवाद का आदर हर पक्ष को करना चाहिए।
लोकतंत्र की माँ भारत में किस तंत्र के प्रभाव में किसानों पर गाड़ी चलाई जा रही है? गोदी मीडिया की हिंसक भाषा की गाड़ी रोज़ किसानों को कुचलती है। सर फोड़ने की भाषा अफ़सर की और देख लेने की भाषा मंत्री की। हिंसा सोच से भाषा में और भाषा से कार्य में आ जाती है। हिंसा की भाषा से बचिए।
पहले किसानों के रास्ते में कीलें गाड़ दी गईं और अब किसानों पर गाड़ी चलवा दी गई। मामले को बराबर करने के लिए गोदी मीडिया नाम का रोड रोलर चलवा दिया जाएगा। विपक्ष को रोकने का फ़ैसला भी आता ही होगा। किसानों को निकालने की बात कर मंत्री कैसा देश बनाना चाहते हैं?
A small dream of mine came true today as I was able to take my parents on their first flight.
आज जिंदगी का एक सपना पूरा हुआ जब अपने मां - पापा को पहली बार फ्लाइट पर बैठा पाया। सभी की दुआ और आशिर्वाद के लिए हमेशा आभारी रहूंगा 🙏🏽
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार का झूठ उजागर करें। उन्हें और माननीय अदालत को यह देखना चाहिए कि झूठ उजागर करने वालों को झूठे मामलों में फँसाया जाता है। झूठ के उजागर को जनता तक पहुँचाना आसान नहीं है। अब क्या जनता अपना काम छोड़ कर चौराहे और चौपाल पर प्राइम टाइम का प्रसारण करेगी ?
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