वो लाइन वाले दिन आज के नफ़रत वाली दुनियां से अच्छी थी,
लाइन में एक दुसरे पीछे खड़े होते थे, और एक दुसरे का हाल चाल पुछ लेते थे और दोस्ती हो जाती थी, वो फिर चाहें किसी भी धर्म का होता था, या किसी मज़हब का होता था या फिर किसी भी जाति होता था,
आज से अच्छा ही था, वो लाइन वाले दिन,